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प्रकृति की सुंदरता की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।
प्रकृति की सुंदरता की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।

प्रकृति की सुंदरता की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है,क्योंकि जब भी प्रकृति को गहन भाव से देखी जाए तो आंखें सदैव नम होती है क्योंकि इनकी अपार सुंदरता, सौम्यता तथा शांति स्वरूप से हृदय में अनंत रूपी सुकून का अहसास उमर पड़ता है मानो प्रकृति के स्वभाव में भावात्मक स्तर ही कुछ ऐसी है।
आनंद सुकून व शालीनता किसे कहते हैं, इस प्रश्न का उत्तर सदैव हमें प्रकृति के सौंदर्य स्वरूप को देखकर ही मिलता है क्योंकि जब हम इस स्वरूप की आगाज की ओर नजर देते हैं, तभी कहीं जाकर हम इसकी साक्ष्य भाव को समझ पाते हैं।
हमारी भावनाओं में चाहे किसी भी तरह की ख्यालों का समावेश क्यों ना हो, पर हम खुद को हर्षित सुंदर भाव में ले ही आते हैं अगर हम यह निश्चितता पूर्वक प्रकृति के सामनेचरितार्थ स्वरूप को निहार ले तो!
हमारी खुद की निहार वहन दृष्टि ही एक परमसुख द्वार है और प्रकृति के भावों की ओर केन्द्रित हैं, जिन्हे हम स्वयं में समाहित करके स्वयं को आनंदमय व हर्षित कर पाते हैं।
#स्वीटीसोनीलाल।