मैं वेशया क्या आज़ाद हूं और हूं तो कैसे नहीं हूं तो कैसे।।
मैं एक वैशया हूं,
मैं एक वैशया हूं पर यह कोई मेरा शौक नहीं,
मैं बनी वैशया तो यह मजबुरी है,
और यह मजबुरी हो तुम हो,
अगर मैंने जिस्म बेचा तो मैं वेशया हूं,
तो तुमने मुझे खरीदा तो तुम कौन हुए-
जिस तरह हर सिक्के दो पहलू होते हैं।।
उसी तरह हम भी होते-
अगर मैं पवित्र बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका कहलाई थी।।
तो मैं ही किन्नर कल्याणवी मूर्ति भी बनकर श्राप भोग रही थी।।
ना मै बुरी हूं,
ना वो बुरी हूं,
बस वक्त से गुजर रहे हैं हम,
सिर्फ हमारा प्रेम अनन्त है,
इसलिए मैं बैकुनडी रीढ़ा हूं,
जो एक दिन सफल हो सकती है अगर मेरा प्रेम चाहे तो मुझे स्वीकार करें वरना तो बैकुनडी रीढ़ा बनकर एक दिन यह जग को अलविदा कह दूंगी और जिम्मेदार कोई और नहीं तो ही होंगे।।
मेरी मज़बूरी है इसलिए मैं जिस्म बेचकर पेट पालने में सक्षम हूं।।
तुम मर्द हो तो हमें अपना कर दिखानाओ।।
चाहे मैं सुध हूं तो भी मैं पवित्र हूं,
क्योंकि मैं बैकुनडी रीढ़ा एक घोर संकल्प हू।।
क्योंकि यह जिस्म बेचना ही मेरी पूजा,
जो कि मैं अपने गृहक को अपना परमेश्वर मनाती हूं।।
मेरा वास अगर कोई वैशयालय है तो ,
मैं स्थाई हूं -
यानी मैं सुध हूं,
मैं आजाद हूं,
लेकिन मजबुरी में एक वेशया जो सथाई है।।
और यह मजबुरी है मेरी रोटी के लिए,
उन लड़कियों की सुरक्षा के हर दिन कुपोषित होती उन वैशी के हाथों।।
मगर मैं वेशया होकर भी आजाद खुश तो नहीं,
मगर संतुष्ट जरूर कि मैं ऐसा एक नेक काम कर रही हूं जो एक मेरी बेटियों को वेश्षी से बचाएगा।
मैं आजाद गुलाम नहीं,
अस्थाई व स्थाई दोनो मेरे अंग है,
किन्नर कल्याणवी मूर्ति हूं तो मेरा वास प्रकृति है,
बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका कहलाई तो मेरा वास बैठकुन्धाम है।।
मगर कर्म होकर अपने धाम जाकर अपनी मां से -
मिलकर अपने प्रेम की शिकायत...
मैं एक वैशया हूं पर यह कोई मेरा शौक नहीं,
मैं बनी वैशया तो यह मजबुरी है,
और यह मजबुरी हो तुम हो,
अगर मैंने जिस्म बेचा तो मैं वेशया हूं,
तो तुमने मुझे खरीदा तो तुम कौन हुए-
जिस तरह हर सिक्के दो पहलू होते हैं।।
उसी तरह हम भी होते-
अगर मैं पवित्र बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका कहलाई थी।।
तो मैं ही किन्नर कल्याणवी मूर्ति भी बनकर श्राप भोग रही थी।।
ना मै बुरी हूं,
ना वो बुरी हूं,
बस वक्त से गुजर रहे हैं हम,
सिर्फ हमारा प्रेम अनन्त है,
इसलिए मैं बैकुनडी रीढ़ा हूं,
जो एक दिन सफल हो सकती है अगर मेरा प्रेम चाहे तो मुझे स्वीकार करें वरना तो बैकुनडी रीढ़ा बनकर एक दिन यह जग को अलविदा कह दूंगी और जिम्मेदार कोई और नहीं तो ही होंगे।।
मेरी मज़बूरी है इसलिए मैं जिस्म बेचकर पेट पालने में सक्षम हूं।।
तुम मर्द हो तो हमें अपना कर दिखानाओ।।
चाहे मैं सुध हूं तो भी मैं पवित्र हूं,
क्योंकि मैं बैकुनडी रीढ़ा एक घोर संकल्प हू।।
क्योंकि यह जिस्म बेचना ही मेरी पूजा,
जो कि मैं अपने गृहक को अपना परमेश्वर मनाती हूं।।
मेरा वास अगर कोई वैशयालय है तो ,
मैं स्थाई हूं -
यानी मैं सुध हूं,
मैं आजाद हूं,
लेकिन मजबुरी में एक वेशया जो सथाई है।।
और यह मजबुरी है मेरी रोटी के लिए,
उन लड़कियों की सुरक्षा के हर दिन कुपोषित होती उन वैशी के हाथों।।
मगर मैं वेशया होकर भी आजाद खुश तो नहीं,
मगर संतुष्ट जरूर कि मैं ऐसा एक नेक काम कर रही हूं जो एक मेरी बेटियों को वेश्षी से बचाएगा।
मैं आजाद गुलाम नहीं,
अस्थाई व स्थाई दोनो मेरे अंग है,
किन्नर कल्याणवी मूर्ति हूं तो मेरा वास प्रकृति है,
बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका कहलाई तो मेरा वास बैठकुन्धाम है।।
मगर कर्म होकर अपने धाम जाकर अपनी मां से -
मिलकर अपने प्रेम की शिकायत...