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वो दो फूल


एक दिन राह चलते रूककर तोड़े थे मैंने दो फूल
एक तुम्हारे लिए एक मेरे लिए चटक रंग के फूल
बहुत ही खूबसूरत थे हमारे निस्वार्थ प्रेम की तरह
सोचा था हम मिलने वाले हैं मैं दूंगी तुम्हें एक फूल
दोनों को तोड़ने का गुनाह करके खुश थी मैं बहुत
मिलने की खुशी इतनी कि भूल गयी तोड़े हैं फूल
ना बातें हुई ना मुलाकातें हुईं लौटे थे खाली हाथ
फिर याद ही नहीं रहा कि कभी तोड़े थे मैंने फूल
ना मिलने की व्याकुलता को भुला रहा था मन कि
आज पर्स में एक पर्ची के साथ मिले मुझे वो फूल
नहीं रहा उनका वो जीवन साथ जो खिलने में था
तुम्हारी भावनाओं जैसे मुरझा के सूख गए थे फूल
मुरझाए फूलों ने भी मगर रंग कहां छोड़ा था कि
मेरे प्रेम की तरह ही खुश्बू से महक रहे थे वो फूल
शब्दों में ही पिरो के रखा हैं उन फूलों के किस्से को
कभी पढ़ लेना तुम और स्वीकार कर‌ लेना वो फूल
सवि