...

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लम्हे जो बीत गए हैं कल
वो करोड़ों पल, लम्हे जो बीत गए हैं कल
याद आते हैं आज पल-पल.....
वो मृदु उमंग की एक तरंग कर जाती है आंखें नम ॥ वो हँसी-खुशी से भरा बचपन हो गया है छू-मंतर.....

काश वापस आ जाती वो मुस्कान, वो आनंद की खान, होती थी जो दिल के अंदर.....
कर देती थी जो आनंदित, अंतरंग संग बहिरंग ॥

बढ़ते काल-चक्र के संग हो गया है जीवन बेरंग.....
तरस रहे हैं हम सब की भर जाए जीवन की कला में पुनः वो बाल्यकाल के रंग.....
काश जीवन के बगिया में आजाए पुनः वो मृदु उमंग.....।।

© प्रशांत•§