"बेवजह कुण्डी खट-खटाया करो"
*आसपास के लोगों से मिलते रहा करो,*
*उनकी थोड़ी खैर खबर भी रखा करो।*
*जाने कौन कितने अवसाद में जी रहा है,*
*पता नहीं कौन बस पलों को गिन रहा है।*
*कभी निकलो अपने घरोदों से,*
*औरों के आशियानें में भी जाया करो।*
*कभी कभी अपने पड़ोसियों की कुण्डी,*
*तुम बेवजह ही खट-खटाया करो।*
*कभी यों ही किसी के कंधे पर हाथ रख,*
*साथ होने का एहसास दिलाया करो।*
*कभी बिन मतलब लोगों से बतियाया करो,*
*बिना जज किये बस सुनते जाया करो।*
*बहुत कुछ टूटे मिलेंगे, कुछ रूठे मिलेंगे,*
*जिन्दगी से मायूस भी मिलेंगे।*
*बस कुछ प्यारी सी उम्मीदें,*
*कभी उनके दिलों में जगाया करो।*
*ऐसा न हो फिर वक्त ही न मिले,*
*और मुट्ठी की रेत की तरह लोग फिसलते रहे।*
*यूं वक्त-बेवक्त ही सही,*
*लोगों को गले तो लगाया करो।*
*जो बेवजह कुण्डी खट-खटाओगे।*
*खुद को भी तरो ताज़ा पाओगे।*
© JUGNU
*उनकी थोड़ी खैर खबर भी रखा करो।*
*जाने कौन कितने अवसाद में जी रहा है,*
*पता नहीं कौन बस पलों को गिन रहा है।*
*कभी निकलो अपने घरोदों से,*
*औरों के आशियानें में भी जाया करो।*
*कभी कभी अपने पड़ोसियों की कुण्डी,*
*तुम बेवजह ही खट-खटाया करो।*
*कभी यों ही किसी के कंधे पर हाथ रख,*
*साथ होने का एहसास दिलाया करो।*
*कभी बिन मतलब लोगों से बतियाया करो,*
*बिना जज किये बस सुनते जाया करो।*
*बहुत कुछ टूटे मिलेंगे, कुछ रूठे मिलेंगे,*
*जिन्दगी से मायूस भी मिलेंगे।*
*बस कुछ प्यारी सी उम्मीदें,*
*कभी उनके दिलों में जगाया करो।*
*ऐसा न हो फिर वक्त ही न मिले,*
*और मुट्ठी की रेत की तरह लोग फिसलते रहे।*
*यूं वक्त-बेवक्त ही सही,*
*लोगों को गले तो लगाया करो।*
*जो बेवजह कुण्डी खट-खटाओगे।*
*खुद को भी तरो ताज़ा पाओगे।*
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