...

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अंतर्द्वंद्
समीर बहे मंद मंद।
शरीर झूमे छंद छंद।
हृदय हुआ प्रफुल्लित
मिट गए अंतर्द्वंद ।

खिले जब ध्यान कमल।
मन हो जाये निर्मल।
भाव विभोर ध्यानी..
अमृत बरसे प्रतिपल।

© चैतन्य तीर्थ

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