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क्या मैं आज़ाद हूँ?

© All Rights Reservedविषय:मैं आज़ाद हूँ।
शीर्षक:क्या मैं आज़ाद हूँ?
विद्या:कविता।

मैं आजाद हूँ,ऐसा मैंने रोज सुना।
सुनकर ऐसा मैंने,
न जाने कितने,सपनों को बुना।

पर न मिली कोई ख़ुशी,
न कोई स्वप्न सम्पूर्ण हुआ।
जीवन में तय किया जो लक्ष्य,
न अब तक पूर्ण हुआ।

आजादी,आजाद जैसे शब्द,बस शब्द ही रह गए।
आजादी की चाह में हम,
पिंजरे में बंद रह गए।

पिंजरा कोई मर्यादा का,
कोई शर्म का मिला।
कोई कर्तव्य का पिंजरा,
कोई धर्म का मिला।

कभी नारी होने का बंधन।
कभी रोती आँखें,
कभी छटपटाता मन।

कैद में रखकर मुझे,
आजादी का नाम देते हो।
जिंदगी का नाम बताकर,
मौत की ही शाम देते हो।

जब न कोई राह मेरी।
जब न कोई चाह मेरी।
बस दर्द ही मेरे हिस्से,
हर एक आह मेरी।
तब कैसी,मैं आज़ाद हूँ?
है कैसी,आज़ादी की राह मेरी?

मैं एक मूक संवाद हूँ।
जब कैद मेरा अस्तित्व,
तब क्या मैं आजाद हूँ?

प्रिया प्रिंसेस पवाँर
Priya princess Panwar
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
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