...

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प्यारी मां
माना अनपढ़ है, पर तजुर्बा भरमार है
दिल की साफ और नाजुक है वो
उम्र ज्यादा और जान कम है
मां गुस्से में हो तो रो देती है......

मेरी कलम ,स्याही, कागज है वो
जीवन का सार नहीं अध्याय हैं वो
खुली किताब तो नहीं, बंद दरवाजे की चाबी है
काशी ना मिला, मां मिल गई
चारो धाम दिखाई दे गए उस दिन
कभी कापती, तो कभी सुदृढ आवाज है वो

दुआएं चौखट पर छोड़ गई इस कदर की
मुझे बादशाही सिखा गई और खुद फकीर बन गई
माना कुछ नहीं फिर भी सब कुछ है
क्योंकि मां मेरी हेलेडा, कनक सब कुछ है........

आंखो में नमी और मुख पर रौनक वीरान है.....
कनको में दो वलय, तो कुछ कुंतल शवेत है
कासु कारण कटु हो गई, चंदन सम कगु ग्रहण करती
बालिश बिन नींद ना आवे, बच्चे पर आकुल है वो

कलम स्याही से बोल रही कि
सहम बिन मां ना मिलती
अल्लाह, ख़ुदा, राम, सब कुछ मां में समाया
मरुस्थल में बहती अंजुन रस की धारा है वो

मां के मुख पर हंसी बिखरी इस कदर की
दुनिया की मोहब्बतें फ़िज़ूल हो गई
मां के चरणों की धूल भी जन्नत हो गई.......

आगे क्या लिखूं, तुम सब समझते हो......
मां सरस्वती वंदना, लक्ष्मी है मेरी
किताब और कविता है मेरी
कुछ उल्टे हुए पन्ने है यह तो
जो आपने इत्मीनान से पढ़ें.......

मां तो मां होती है, कभी रस तो कभी फूल
तेज धूप पर छाया, तो मानसून सम जीवन पर पहरा
मेहनत की लकीरों पर आराम तो
कदमों की राह पर शीत लहर है वो.........