रंग मेरे कान्हा के!
रंग ढग की बात है,
जग मे स्थिर कुछ नहीं।
उत्तम वो लागे ऐसे, मन अब मेरा नहीं।
रंग उसके है ऐसी,
नीला काला, अंग जैसे,
मुस्कान जुलाब सी,
श्वेत माखन मन वाला,
पीला रंग खूब जचता,
हरा मोर पंख...
जग मे स्थिर कुछ नहीं।
उत्तम वो लागे ऐसे, मन अब मेरा नहीं।
रंग उसके है ऐसी,
नीला काला, अंग जैसे,
मुस्कान जुलाब सी,
श्वेत माखन मन वाला,
पीला रंग खूब जचता,
हरा मोर पंख...