यूँ हमेशा से ना था
रंगो की चाह मुझमें भी थी
यूँ बेरंग मै हमेशा से ना थी,
ख्वाहिशों से भरा मेरा भी शहर था
यूँ सुनी गलियां हमेशा से ना थी,
खुशियाँ से खिलखिलाते मन के बगीचे मेरे भी थे
यूँ खामोशियो से भरे बंज़र खेत हमेशा ना थे,
उम्मीदों के सूरज हर रोज़ उगते मेरे आँगन मे भी थे
यूँ उदासियों से भरी तन्हाईयाँ हमेशा से ना थी,
मैं भी खुद को जानती, पहचानती...
यूँ बेरंग मै हमेशा से ना थी,
ख्वाहिशों से भरा मेरा भी शहर था
यूँ सुनी गलियां हमेशा से ना थी,
खुशियाँ से खिलखिलाते मन के बगीचे मेरे भी थे
यूँ खामोशियो से भरे बंज़र खेत हमेशा ना थे,
उम्मीदों के सूरज हर रोज़ उगते मेरे आँगन मे भी थे
यूँ उदासियों से भरी तन्हाईयाँ हमेशा से ना थी,
मैं भी खुद को जानती, पहचानती...