...

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रुक्मिणी की व्यथा
आज निशब्द खड़ी हूं मैं, हे गोविंद। आ जाएं,
भिजवाया था प्रेम निमंत्रण, मुझे उत्तर मात्र ही दे जाए,

नहीं ज्ञात की आप पर, क्या मेरा अधिकार है,
मैं रम गयी हूँ प्रेम में, आप ही रगों में सवार है,

आज नयन में...