...

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मैं बदल रहा हूं
शीर्षक- मैं बदल रहा हूं

शिक्षित से अच्छा अनपढ़ था
फिर भी शिक्षित से बढ़कर था
अपने अपनों का अपनापन
सुशीतल मधुर सुधाकर था

अब अनपढ़ से मैं शिक्षित हूं
संस्कारों से परिशिक्षित हूं
फिर भी न जाने क्यूं खुद से
खुद ही खूब मैं लज्जित हूं

न कहीं रहा खुशियों का पल
सांस्कारिक भरे कल का कल
शिक्षित से अच्छा अनपढ़ था
न थी लोगों में कल बल छल,

बढ़ रहें थाना चौकी क्यों
घरों में चूल्हा चक्की क्यों...