...

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वो पल अजीब था
वो पल अजीब था,
तूम रूक गए थे ओर हम चल पड़े थे।
वो पल अजीब था,
तेरे बुलाने पर हम आधे घंटे पहले आए थे।
वो पल अजीब था,
तुम करीब थे ओर हम दूर देखते थे।
वो पल अजीब था,
तेरी आवाज़ सुनने के लिए हम कम बोलते थे।
वो पल अजीब था,
तुम जाने को कहती ओर हम अकेले पन महसूस करते थे।
"संकेत "पल पल का मै दिवाना,
तेरी पनाह स्वगँ से बहतरीन थे।

डाँ. माला चुडासमा "संकेत "
गीर सोमनाथ

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