![...](https://api.writco.in/assets/images/post/default/story-poem/normal/1SELFHELP B.webp)
2 views
ढूँढ़ रहा था
वो कल दराज में मेरी लिखी हुई एक किताब ढूँढ़ रहा था
पहली बार वो खुद में मुझे इतने दिनों बाद ढूँढ़ रहा था
मैंने सवाल किये ही नहीं फिर भी वो जवाब ढूँढ़ रहा था
शायद जवाब मिले नहीं तभी तो मेरी किताब ढूँढ़ रहा था
मैंने कितना समझा है उसे वो इसका हिसाब ढूँढ़ रहा था
फिर न जाने क्यों मुझे ही हर तरफ बेहिसाब ढूँढ़ रहा था
अपनी निगाहों में मेरा बरसों पुराना ख़्वाब ढूँढ़ रहा था
बड़ी फुर्सत से अपनी कहानी में मुझे आज ढूँढ़ रहा था
पहली बार वो खुद में मुझे इतने दिनों बाद ढूँढ़ रहा था
मैंने सवाल किये ही नहीं फिर भी वो जवाब ढूँढ़ रहा था
शायद जवाब मिले नहीं तभी तो मेरी किताब ढूँढ़ रहा था
मैंने कितना समझा है उसे वो इसका हिसाब ढूँढ़ रहा था
फिर न जाने क्यों मुझे ही हर तरफ बेहिसाब ढूँढ़ रहा था
अपनी निगाहों में मेरा बरसों पुराना ख़्वाब ढूँढ़ रहा था
बड़ी फुर्सत से अपनी कहानी में मुझे आज ढूँढ़ रहा था
Related Stories
9 Likes
4
Comments
9 Likes
4
Comments