मुर्दे अभी भी जिंदा हैं
मुर्दे अभी भी जिंदा हैं
जी हां मुर्दे अभी भी जिंदा हैं
फिर भी नहीं कोई शर्मिंदा हैं
यही बात हर आते जाते से कहता हूं
लेकिन कोई नहीं सुनता
अगर कोई सुनता
तो
कोई दुःखी नहीं होता
कोई तन्हाई में नहीं रोता
कोई बिखरा नहीं होता
कोई अपने आप में सिमटा नहीं होता
अगर कोई सुनता या समझता होता
तो
कोई गरीबी का रोना नहीं रोता
कोई भेदभाव नहीं होता
कहीं बलात्कार नहीं होता
कोई छलकपट नहीं होता
पर कोई नहीं सुनता
सब
एक धुरी की दौड़ में व्यस्त हैं
कोई अपनों से पस्त हैं
कोई नहीं सुनता
कोई मुर्दा नहीं होता
तो
आदमी आदमी को नहीं नोचता
कोई किसी की क़ब्र भी नहीं खोदता
गर ये इंसान मुर्दा ना होता
सही में
गर आज का इंसा इंसानियत में होता..!
© DEEPAK BUNELA
जी हां मुर्दे अभी भी जिंदा हैं
फिर भी नहीं कोई शर्मिंदा हैं
यही बात हर आते जाते से कहता हूं
लेकिन कोई नहीं सुनता
अगर कोई सुनता
तो
कोई दुःखी नहीं होता
कोई तन्हाई में नहीं रोता
कोई बिखरा नहीं होता
कोई अपने आप में सिमटा नहीं होता
अगर कोई सुनता या समझता होता
तो
कोई गरीबी का रोना नहीं रोता
कोई भेदभाव नहीं होता
कहीं बलात्कार नहीं होता
कोई छलकपट नहीं होता
पर कोई नहीं सुनता
सब
एक धुरी की दौड़ में व्यस्त हैं
कोई अपनों से पस्त हैं
कोई नहीं सुनता
कोई मुर्दा नहीं होता
तो
आदमी आदमी को नहीं नोचता
कोई किसी की क़ब्र भी नहीं खोदता
गर ये इंसान मुर्दा ना होता
सही में
गर आज का इंसा इंसानियत में होता..!
© DEEPAK BUNELA