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चलना ज़रा संभलकर...
कब- तक साथ होगा अपना,
कभी अकेले खुद को भी है चलना।
चोट भी लगेगी,
ठोकर भी मिलेंगी,
ये तन को लगे घाव है भर जाएंगे,
सह नहीं पाओगे हारे मन से अगर।
चलना ज़रा संभलकर।

मुखौटे कई मिलेंगे ज़िन्दगी की राहों पर,
कुछ लुभाएंगे, खुद को अपना बताएंगे,
न समझ आए की कौन है साथी और कौन घाती
तो एक बार एतबार खुद पे कर।
चलना ज़रा संभलकर।

आसमां में उड़ने की चाहत हो तो
खुद को मजबूत रखना,
अगर तुम गिरे तो हँसेगा ये जमाना।
मकसद है सही तो गिरने से न डर,
एक बार नहीं सौ बार कर,
जीत न जाओं तब-तक हार स्वीकार न कर।
चलना ज़रा संभलकर।

कामयाबी के पर लगे जो तुम्हें
तो जाहिर करना,
दूसरों को हाथ और साथ देकर।
चलना ज़रा संभलकर।
✍️मनीषा मीना

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