हसरतें हज़ार हैं…..
सुनो तुम
आज फिर से
मैं तन्हा हूँ
अपनी ही
हसरतों के बाज़ार में
और
बैठा हूँ
उसी पुराने दरख़्त के नीचे
जहाँ से
उस शाम
तुम चलीं गई थी
मुझसे हाथ छुड़ाते हुए
जानती हो
आज भी
उस दरख़्त के परिंदे
गाते...
आज फिर से
मैं तन्हा हूँ
अपनी ही
हसरतों के बाज़ार में
और
बैठा हूँ
उसी पुराने दरख़्त के नीचे
जहाँ से
उस शाम
तुम चलीं गई थी
मुझसे हाथ छुड़ाते हुए
जानती हो
आज भी
उस दरख़्त के परिंदे
गाते...