...

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!...वतन की खुशियां...!
फूल थे जो दाग वाले , कमल ये बन कर खिले पड़े है
अजब सी जन्नत हमने देखी, सब दाग वाले धुले पड़े है

मिली हुकूमत आज इनको, न बात की तमीज इनको
हक जो बोलो तो बात काटे, मूह जो खोलो लिपट पड़े है

ज़हर ये फैली है चारो जानिब, ज़हर ही उगले खबरी सारे
बहार लोटी खिजां ये आई चमन की कलिया जली पड़ी है

याजूज-माजूज के है ये लश्कर, वतन प्रेमी खुद को कहते
लगा के दामन में आग देखो वतन की खुशियां ले उड़े है

जो नेक थे अब नही है, और जो है अगर तो, अब नहीं है
मैं हैरान हूं ओ मेरे मौला, अब ईमान वाले सब मर चुके है

––12114

खबरी–गोदी मीडिया
बहार–बसंत
खिंजा–पतझड़
याजूज माजूज–इंशानियत के दुश्मन
दामन–भाईचारा