...

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मेरा गांव
किन लफ्जों में करूं बयान में ,
प्यारी बचपन की वो यादें ,
भूले से भी न भूली मैं ,
खट्टी - मीठी सी वो बातें,

खेतों से खलिहानों तक है,
फूल, वृक्ष, बागानों तक है,
यादों की सीमा ना कोई,
पर्वत से आसमानों तक है ,

खुशबू जो थी उस मिट्टी की ,
दिल को अब भी लुभाती है,
बरसों बीते ,अब भी दिल को,
गांव की याद सताती है ,

ऊंचे- नीची राहों से चलकर,
कभी धूप, छांव से चलकर,
मीलों पैदल चलते थे हम,
तब जाकर के पढ़ते थे हम,

रात अंधेरी होती थी पर,
बिजली बेशक तब न थी पर,
दिखती थी जुगनू की टिमटिम,
बारिश भी थी रिमझिम रिमझिम ,

टीवी ना था ,ना इंटरनेट,
ना ही एफबी,ना ही व्हाट्सएप,
दादी मां की कहानियां थी ,
मजेदार था लेकिन हर पल,

सारी दुनियां से निराला,
गांव मेरा बहुत ही प्यारा,
भूल नहीं सकती मैं उसको,
जहां मैंने बचपन गुजारा.....





© Munni Joshi