...

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कितनी जल्दी बड़े हुए हम
कितनी जल्दी बड़े हो गए हम पता ही नहीं चला
एग्जाम्स की जगह कब प्रोजेक्ट ने ले ली
क्लास रूम की जगह कब बोर्ड रूम्स ने ले ली
स्कूल यूनिफार्म की जगह कब फॉर्मल्स ने ले ली
रातों की वह मीठी नींद जिंदगी ने छीन ली
कब इन जिम्मेदारियों ने हमसे वह मासूमियत छीन ली
सुबह तो आज भी होती है पर अब वह 5 मिनट की जिद नहीं होती
अब नींद से जगाने के लिए मां की वह डांट नहीं होती
नाश्ते के लिए पुकारती वह आवाज नहीं होती
कब बड़े हो गए हम पता ही नहीं चला
बचपन कहां खो गया पता ही नहीं चला
जिंदगी बहुत कुछ सिखा देती है सुना था
पर इतना जल्दी बड़ा बना देती है पता नहीं था


© Megha