तुम न आए
शाख के सब झर गए हैं फूल
लेकिन तुम न आए
देह में चुभने लगे हैं शूल
लेकिन तुम न आए
रात को कर के इशारे
महमहाती रात रानी
पत्तियों से झांकती है
आज फिर चंपा दिवानी
टूटकर बिखरे नदी के कूल
लेकिन तुम न आए
जुगनुओं न खोल कर पर
एक दिवाली रची है
ढल गयी है रात सारी
बात कुछ पल की बची है
आसुंओं का ढह गया मस्तूल
लेकिन तुम न आए
शाख के सब झर गए हैं फूल
लेकिन तुम न आए
लेकिन तुम न आए
देह में चुभने लगे हैं शूल
लेकिन तुम न आए
रात को कर के इशारे
महमहाती रात रानी
पत्तियों से झांकती है
आज फिर चंपा दिवानी
टूटकर बिखरे नदी के कूल
लेकिन तुम न आए
जुगनुओं न खोल कर पर
एक दिवाली रची है
ढल गयी है रात सारी
बात कुछ पल की बची है
आसुंओं का ढह गया मस्तूल
लेकिन तुम न आए
शाख के सब झर गए हैं फूल
लेकिन तुम न आए