एक जैसी और अलग गाथा का वर्णन।।
मेरी डोली नहीं बोली लगती है।।,
मेरी खुद की रचना में मैंने खुद कुछ ना रचा।।
मेरे पंख है पर उड़ान नहीं।।,
मैं सरवसत्र होकर भी नहीं।।
मैं सर्वप्रथम होकर भी शून्य।।
मेरी खुद की रचना में मेरा खुद का अधिपति नहीं,
मैं सबकी हुई जग मां
,हर रूप मां
मगर कऊनू नाही होऊं मेरो।।
मेरे रूप एक नहीं हैं,,
ना परिभाषा एक है,,
अगर समझो किस्मत की लकीर तो मैं वरदान।।
मगर अगर ना समझो...
मेरी खुद की रचना में मैंने खुद कुछ ना रचा।।
मेरे पंख है पर उड़ान नहीं।।,
मैं सरवसत्र होकर भी नहीं।।
मैं सर्वप्रथम होकर भी शून्य।।
मेरी खुद की रचना में मेरा खुद का अधिपति नहीं,
मैं सबकी हुई जग मां
,हर रूप मां
मगर कऊनू नाही होऊं मेरो।।
मेरे रूप एक नहीं हैं,,
ना परिभाषा एक है,,
अगर समझो किस्मत की लकीर तो मैं वरदान।।
मगर अगर ना समझो...