जमाना-ए-आजकल
आधुनिकता के इस दौर में इतना आगे बढ़ गए हैं हम
कि आठ बाई आठ के फ्लैट में ही पूरा खानदान हो गए हैं
संस्कारों को कब का भूल गया है सारा जनमानस,लेकिन
एक दूरभाष के साथ बच्चे बड़ों से पहले जवान हो गए हैं
जिन्होंने उनको जना था,उनको ही घर से विलग करकर
वो किसी कल के आए नए फरेबी की जान हो गए हैं
इज्जत उछालकर बड़ी निर्लज्जता से,किसी गैर के बहन की
समझते हैं कि अपनी सगी बहनों की नजरों में महान हो गए हैं
और पढ़ते-पढ़ते आजकल के जमाने के राजनीतिज्ञों के साथ
लगता है अपने आप में ही सब राक्षसी ज्ञान हो गए हैं
© प्रांजल यादव
कि आठ बाई आठ के फ्लैट में ही पूरा खानदान हो गए हैं
संस्कारों को कब का भूल गया है सारा जनमानस,लेकिन
एक दूरभाष के साथ बच्चे बड़ों से पहले जवान हो गए हैं
जिन्होंने उनको जना था,उनको ही घर से विलग करकर
वो किसी कल के आए नए फरेबी की जान हो गए हैं
इज्जत उछालकर बड़ी निर्लज्जता से,किसी गैर के बहन की
समझते हैं कि अपनी सगी बहनों की नजरों में महान हो गए हैं
और पढ़ते-पढ़ते आजकल के जमाने के राजनीतिज्ञों के साथ
लगता है अपने आप में ही सब राक्षसी ज्ञान हो गए हैं
© प्रांजल यादव