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चीन ! तेरी नीचता अभिशाप है ।


चीन ! तेरी नीचता अभिशाप है ।
तू कलंकित गर्भिणी का पाप है ।

विश्व मानव मूल्य का तूं खेद है ।
हृदय तेरा भेडिये का छेद है ।।
तू पतित निर्लज्ज की पहचान है ।
नाम तेरा बक्त का अपमान है ।।

तुझे तेरी आंख भी क्यों देखती है ?
तेरी माता तुझे पाकर चीखती है ।
तू अमित कायर तुझे धिक्कार है ।
लात खाया हिंद से सौ बार है ।।

गर तुझे कुछ स्वयं का अहसास है ।
मर्द होने का अगर आभास है ।
रोष किंचित तो निकल आ सामने ।
हम खड़े हैं बज्र का सीना तने ।

एक पल में चीर देना चाहते हैं ।
हम तुम्हारा रक्त पीना चाहते हैं ।
चीन! तू खुद मौत अपने आप है ।
तूं कलंकित गर्भिणी का पाप है ।

@समर्थ
© Sujan Tiwari Samarth