...

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अतीत के पन्नों में चली गई मेरी कलम की एक अद्भुत काल्पनिक संग्रह का प्रसारण सुनाते हैं।भाग२
अतीत एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय बुनता दिखता है,
वह अपने एक हस्तलेख में है प्रस्तुत किए गए एक अध्ययन में चर्चा का पहलू बनकर अवतरित!
वह ईश्वर नहीं है वास्तव में वो हमारी आत्मा अर्थात परमात्मा है ,

हम जैसा बोते उसी के आधार हमारी आत्मा को किसी भी जगह स्थान प्राप्त होता इसलिए आत्मा को परमात्मिका कहकर हम उसे ही इस गाथा का अवतार मानते हैं,
वह हमारे लिए एक साथ जरूर है मगर उसे ही अपने अस्तित्व की आसीमता मानकर उसे ही अपना सर्वस्वत्र मान पाना यह स्वयं ही कालचकृ अर्थात स्वयं ही अस्तित्व की आसीमता के विषय हस्तक्षेप छेद करता है क्योंकि क्योंकि कुछ मुख्य तथ्य स्वरूप प्रस्तुत श्रृंखला में गठित असतिव की आसीमता की खोज व रिसर्च मिल पाना शंका होने से इस गाथा का विषय मिलना भी शंकाजनक प्रतीत होता है जिसके कारण उस
शंकाग्रथ से उत्पन्न ग्रस्त व प्रज्वलित होना या न होना भी शंकाजनक का ही आशय उल्लेख स्पष्टीकरण व विषय इस कलि के कलियुग में इच्छा व स्वार्थ से ग्रस्त व उत्पन होता वहीं एकमात्र आखिरी मन्तव्य मंजर तथा असतिव की...