...

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क्यूँ है?
इन आँखों में ये आहट सी क्यूँ है?
कुछ धुंधला सा बिखर जाने की घबराहट सी क्यूं है?
ख्वाबों में दिखता है जो चेहरा अक्सर,
हकीकत में उसके ना मिलने पर शिकायत सी क्यूँ है?
इन आँखों में ये आहट सी क्यूँ है?

वो नींद सुकूँ की, जो पहले हुआ करती थी,
किसी हवा का दामन पकड़े उड़ चली है,
उसके उड़ जाने पर भी ये राहत सी क्यूं है?
और कदम तो ठहरे हैं, यूँ ही जमीं पर,
फिर भी दिल में ये थकावट सी क्यूँ है?
इन आँखों में ये आहट सी क्यूँ है?

वो बेवक़्त बरसती बारिश, भिगो गयी है जो दामन पूरा,
बूंदे उसकी कुछ होंठों पर भी थी गिरी,
उनके गिरने पर भी,
होंठों पर ये फ़ीकी मुस्कुराहट सी क्यूं है?
इन आँखों में ये आहट सी क्यूँ है?
कुछ धुंधला सा बिखर जाने की घबराहट सी क्यूं है?
© midnyt_ink