क्यों प्रतीक्षारत किसी की राह तकूं
किसी की चाह में प्रतीक्षारत बैठी कहीं,
क्यों उसकी मैं निश दिन राह तकूं,
अपने जीवन का सर्वस्व लुटाकर भी,
क्यों सब कुछ पाने की चाह रखूं,
चुनकर विषाक्त कलियां मैंने,
खुद अपना है आधार लिखा,
तिरस्कार उससे है मिला नहीं,
मैंने स्वयं ही ये पुरस्कार चुना,
जब प्यार था मुझको फूलों से,
तब कांटों का संसार मिला,
अब काटों से ही खुशबू है मेरी,
मुझे चुभन में भी...
क्यों उसकी मैं निश दिन राह तकूं,
अपने जीवन का सर्वस्व लुटाकर भी,
क्यों सब कुछ पाने की चाह रखूं,
चुनकर विषाक्त कलियां मैंने,
खुद अपना है आधार लिखा,
तिरस्कार उससे है मिला नहीं,
मैंने स्वयं ही ये पुरस्कार चुना,
जब प्यार था मुझको फूलों से,
तब कांटों का संसार मिला,
अब काटों से ही खुशबू है मेरी,
मुझे चुभन में भी...