वो कहती हैं......
वो कहती है सुनो जाना, मोहब्बत मोम का घर है,
तपिश ये बदगुमानी की, कहीं पिघला ना दे इसको||
मैं कहता हूँ के जिस दिल में, ज़रा भी बदगुमानी हो,
वहां कुछ और हो तो हो, मोहब्बत हो नहीं सकती||
वो कहती है, "सदा ऐसे ही, क्या तुम मुझको चाहोगे?
कि मैं इसमें कमी बिलकुल ग़वारा कर नहीं सकती||"
मैं कहता हूँ "मोहब्बत क्या है, ये तुमने सिखाया है,
मुझे तुमसे मोहब्बत के, सिवा कुछ भी नहीं आता|"
वो कहती है जुदाई से बहुत डरता है मेरा दिल,
के ख़ुद को तुमसे हट कर देखना, मुमकिन नहीं है अब||
मैं कहता हूँ यही खद्से बहुत मुझको सताते हैं,
मगर सच है...
तपिश ये बदगुमानी की, कहीं पिघला ना दे इसको||
मैं कहता हूँ के जिस दिल में, ज़रा भी बदगुमानी हो,
वहां कुछ और हो तो हो, मोहब्बत हो नहीं सकती||
वो कहती है, "सदा ऐसे ही, क्या तुम मुझको चाहोगे?
कि मैं इसमें कमी बिलकुल ग़वारा कर नहीं सकती||"
मैं कहता हूँ "मोहब्बत क्या है, ये तुमने सिखाया है,
मुझे तुमसे मोहब्बत के, सिवा कुछ भी नहीं आता|"
वो कहती है जुदाई से बहुत डरता है मेरा दिल,
के ख़ुद को तुमसे हट कर देखना, मुमकिन नहीं है अब||
मैं कहता हूँ यही खद्से बहुत मुझको सताते हैं,
मगर सच है...