होता नहीं मिलन है
221 / 2122 / 221 / 2122
आकाश का जमीं से होता नहीं मिलन है
क्यूँ आग सी लगी है तपता मेरा ये तन है
मैं भीगती रही हूँ बढ़ती रही जलन है
बरसात हो रही है फिर भी लगी अगन है
बैठे उदासी लेके गुल जार जार रोते
आई बहार कैसी खिलता नहीं...
आकाश का जमीं से होता नहीं मिलन है
क्यूँ आग सी लगी है तपता मेरा ये तन है
मैं भीगती रही हूँ बढ़ती रही जलन है
बरसात हो रही है फिर भी लगी अगन है
बैठे उदासी लेके गुल जार जार रोते
आई बहार कैसी खिलता नहीं...