...

3 views

बस येही बात है
हर कदम पर मैं, अस्तित्व को देखा पर भी रुका नहीं,
जीवन की राहों में, खुद से आगे बढ़ा नहीं।

प्रतीक्षा के उदंड, संघर्षों का सामान,
हर कदम पर मैं, जीवन का इम्तिहान।

अपार ऊर्जा के साथ, आँधी बनकर उड़ा,
सफलता तो बहुत मिले, फिर भी अकेला खड़ा।

जिंदगी से लढ़ने चला था, बहुत पीछे रह गया।
अस्थियाँ मिलीं, दर्द मिला,बस किस्मत को कोसते रह गया।

हर कदम पर था संघर्ष,न थी राहों में आसानी।
पर सहन करते रहा हार-जीत,नयी उम्मीदों का बना पानी।

आँखों में सिर्फ सपना, उमीद तो मर ही गया था,
दूसरों से क्या जलना, जो अपने आप को जला रहा था।

जीवन के चक्र की दौड़ में खो गया ख्वाहिशें,
खुद को भूल गया, खुद को खो दिया आत्मासे ।

मजबूर हूँ, तभी तो मुस्कुरा देता हूँ,
मजदूर हूँ तभी तो सहम सा रहता हूँ।

ज़िन्दगी की दास्तान में, एक अजनबी सी बात है,
पता नहीं पर, कुछ खो गया है।
खाली खाली सा जी रहा हूं, बस येही बात है ।
© Deba Rath