समाज में कहीं कहीं
कहीं कड़ी धूप से फसलें सूख रही थी,
कहीं बादल ने बरस कर घरों को ढहा दिया।
कहीं बेबसी दाने-दाने को मोहताज थी ,
कहीं दाने डालने वालों ने पैसे को पानी में बहा दिया।
कहीं बचपन ने बचपना छोड़ जिम्मेदारियां उठा ली,
कहीं जिम्मेदार लोगों ने पूरा घर जला दिया।
कहीं जिंदगी बदलने को पसीने बहा रहे थे लोग,
कहीं खून बहाकर दरिंदों ने जिंदगी मिटा दिया।
कहीं सीता के मर्यादाओं की तौहीन होने लगी,
कहीं फूहड़ता को लोगों ने अपने तन से लगा लिया।
कहीं चिड़ियों के जोड़े उड़ रहे थे आसमान में।
कहीं लोगों ने पिंजड़ों का बाजार लगा दिया।
कहीं सीरत ने ज़िन्दगी की सूरत बदल डाली।
कहीं पर सूरत ने ज़िस्म का अनेकों खरीददार बना दिया।
© shalini ✍️
#lifelesson
#writicoquote
कहीं बादल ने बरस कर घरों को ढहा दिया।
कहीं बेबसी दाने-दाने को मोहताज थी ,
कहीं दाने डालने वालों ने पैसे को पानी में बहा दिया।
कहीं बचपन ने बचपना छोड़ जिम्मेदारियां उठा ली,
कहीं जिम्मेदार लोगों ने पूरा घर जला दिया।
कहीं जिंदगी बदलने को पसीने बहा रहे थे लोग,
कहीं खून बहाकर दरिंदों ने जिंदगी मिटा दिया।
कहीं सीता के मर्यादाओं की तौहीन होने लगी,
कहीं फूहड़ता को लोगों ने अपने तन से लगा लिया।
कहीं चिड़ियों के जोड़े उड़ रहे थे आसमान में।
कहीं लोगों ने पिंजड़ों का बाजार लगा दिया।
कहीं सीरत ने ज़िन्दगी की सूरत बदल डाली।
कहीं पर सूरत ने ज़िस्म का अनेकों खरीददार बना दिया।
© shalini ✍️
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