...

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रोम रोम।
मैंने मेरी जान क्या कुछ नहीं खोया तेरे जाने से?
एक ज़िंदगी ही थी,और क्या ही था पास मेरे?

मारने वाले पूछ तो लेते मुझसे मेरी ख़्वाइश आख़िरी,
ख़्वाइश इतनी ही थी,सफ़र में साथ तो रहते तुम मेरे।

हिसाब लगाया मेरे जीने का,कुछ हासिल हुआ भी!
तेरे कुछ खत थे,कुछ यादें थी और क्या था पास मेरे?

तुम्हारें ओझल होने तक मैं जलता रहा रोम रोम,
अंधेरे में उजाला ही देता और क्या ही था पास मेरे?

सुना मैंने तुम आए थे मेरे जाने के बाद पूछने हाल मेरा,
कभी जीते जी मेरे,पूछ लेते पास रहकर हाल मेरे।

अब नहीं हूं तो खुश रहना,गम न करना मेरे न होने का,
आई याद गर कभी मेरी तो रो देना क़ब्र पे आ के मेरे।


© वि.र.तारकर.