...

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बगिया...
कल फिर देखा था उसको फूलों वाली बागियों में,
धुंधला सा सब हो गया था आश भरी उन गलियो में


जब एक फूल से वो दूसरे फूल पर जाती थी
दर्द भरा संदेश वो फिर इशारों से समझाती थी


पकड़ के कोमल हांथो से जब टहनी वो हिलती थी
ज़ख्म हरे हो जाते थे और सांस ठहर जाती थी।