...

2 views

युद्ध विभीषिका
आग उगल रहा है आज आसमां
पर कुछ वक्त ठहरिए
एक दिन ये ऐसा रोएगा अपनी प्रेयसी
धरती की बर्बादी पर
कि यूँ लगेगा जैसे सब फट पड़ने को है..इस कायनात में
उस वक्त
इंसान कोसेगा अपने खुदा को उस कहर के लिए ।

नन्हे बच्चों की करुण पुकारें
आज बर्दाश्त में हैं इस आसमां के
ये वीभत्स मंज़र काफ़ी है
पत्थर जैसी छाती में लावा भरने को।

जगह-जगह पड़े माँस के लोथड़े,
लाशों पर भिनभिनाते कीड़े-मकोड़े
इन लाशों को कचटोने वाले पक्षी भी इस ताक में होंगे कि कब इस आसमां की त्योरियाँ ठीक हों
और कब ये लाशें उनका आहार बनें!

लाशों पर रोने वाले दौड़ रहे हैं,
खुद को लाश बनने से रोकने के लिए।
दौड़ती-हाँफती रोती माँ को कोख भी लग रही होगी भारी।
बूढ़ा बाप भेज रहा है न चाहते हुए भी
अपने जवान बेटे को युद्ध में
ये जानते हुए भी कि इस युद्ध-विभीषिका में उसे न मिल सकेगी अपने मृत बेटे की अस्थियाँ भी।

इस बारूद के धुएँ से उठती कालिमा रह-रहकर कहती है-
इन युद्धों से विनाश ही हुआ है
चाहे मानव का हो,चाहे सभ्यता का!!

सिंहासनारूढ़.. मदांध...सत्ताधरी
कब समझेंगे इतनी-सी बात
मृत शरीरों की गरम राख को जरूरत है.. प्रेम के जल से सींचकर
सौहार्द और एकता के फूल खिलाने की!!

🦋🦋🦋🦋🦋🦋🦋🦋🦋🦋🦋🦋🦋

❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

Pic credit:google


© ©सीमा शर्मा 'असीम'