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वृक्ष
एक कविता प्रकृति के दोहन पर 🪴
धरा की संजीवनी (वृक्ष )

हे धरा की संजीवनी
मन करता तुझसे बात करें
तेरी हरियाली की छाँव में बैठकर
तुझसे वार्तालाप करें !

इस पंचभूत शरीर को
मिलती तुझसे आक्सीजन
मनुष्य अपना ही बन रहा दुश्मन
काट कर अपना ही...