...

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प्यार न था
आने या जाने पर तेरे कोई मेरा बस न था,
तू आज़ाद थी और दिल मेरा क़फ़स न था.

आमद-रफ़्त तेरी शुरू हुई दर-ए-दिल पर,
पहचान तो हुई पर मैं तेरा हम-नफ़स न था.

हसरतों के दरिया में उफ़ान उम्मीदों का था,
हक़ीक़त की लहरों में मगर कोई रस न था.

तेरी तल्ख़ यादें तक हैं रखीं मैंने संभाल कर,
पर ख़ुशी में भी तेरे दिल में मेरा दरस न था.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

क़फ़स - पिंजरा (cage)
आमद-रफ़्त - आना जाना (coming & going)
दर-ए-दिल- दिल का दरवाज़ा (door of the heart)
हम-नफ़स- साथी, दोस्त (companion, friend)
तल्ख़- कड़वी (bitter)
एक और नज़्म की पेशकश......
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