...

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मेरा श्रृंगार:मेरी कविताएँ
एक रात कुछ यूं हुआ
उनींदी आँखे नींद को तैयार थीं
इसी क्रम में..
आँखें कब नींद से प्रेम कर बैठीं
कुछ याद नहीं!!

देखती हूँ कुछ ऐसा
कुछ अनूठे गहने थे,
जो आतुर थे मेरी सुंदरता बढ़ाने के लिए!!

कुछ क्षणिकाएँ पड़ी थीं
जो ललाट पर बिंदिया बन
सुशोभित करने लगीं!!

चली आ रही थीं कुछ गजलें
मद मस्त अंदाज में ..इठलाती..
मेरे गले लग नौलखा हार बन गईं!!

कुछ छंद व्रत्यानुप्रास वाले
मेरी संदली कलाइयों से यूँ लिपटे
दसों दिशाएँ राग छेड़ गयीं!!

कुछ प्रार्थना-गीत थे महकते
मेरे श्याम-कुंतल से यूँ लिपटे
ज्यूँ राधा वल्लरी बन कृष्ण से लिपटीं!!

कुछ गीत-श्रंखलाएँ लहर रही थीं
चुना कुछ को बड़ा आतुर हो
अंग-अंग नेह बरसाने लगा हो!!

अब बचे थे कुछ शब्द मीठे-मीठे
होठों पर लाली बन सज गए
ज्यों ही चाहा दर्पण देखना
प्यार के तरह इस नींद ने भी धोखा दे ही दिया..
पास में था उदास तकिया
और कुछ आलिंगनबद्ध सिलवटें
हर बार की तरह!!!!!

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© ©सीमा शर्मा 'असीम'