...

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एक मुस्कुराट..
जब आये इस दुनिया में तब हर रिश्ते से अनजान थे।

किसी से क्या‌ रिश्ता है इस से बेखबर बचपन के कुछ खुशनुमा पल गुजारे।

जैसे बड़े होते गए वैसे-वैसे रिश्तों के भंवर में कुछ ऐसे फंसते चले गए कि कभी-कभी उन रिश्तों कि वजह से खुद को भुला दिया,

तो कभी अपने अरमानों का गला घोटं दिया ,

तो कभी खुद कि खुशी को भुला के दुसरे को खुश करने में लग गए,

यहां तक कि खुद कि जिन्दगी के कुछ अहम फैसले लेने‌ का भी हक हमें नहीं रहता ,

रिश्तों के भंवर में कुछ इस कदर जकड़ चुके हैं कि इस से बाहर निकल के खुद के लिए जीना एक जंग सी हो गई हैं,

और श्याद इसी वजह से बहुतों कि ज़िन्दगी कि डोर उनके हाथों में ना होके दुसरे के हाथों में चली जाती हैं ना चहातें हुए भी।

इसके बाद भी अपने चेहरे पर एक मुस्कुराट रहती हैं।

श्याद यहीं एक वजह होती है इन वे-वजह के रिश्तों के भंवर में जीने कि।।


© RRK