...

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khawishein.....✍️✍️✍️✍️
कुछ और पा लेगें
शायद कुछ रह गई
अधूरी ख्वाहिश
चलते रहें, सोंचते रहें
कभी रुक कर
रास्तो की लम्बाई या
विस्तार मापने की
इच्छा भी आई
फ़िर कभी दौड़ लगाई
शायद अगले मोड़ पर हो
सुकून की परछाई
पर हर बार कुछ सन्नाटें ही
हाथ आई
फ़िर एक रोज़
एक रौशनी सी उतर आई
लगा अंदर कुछ खनकता है
जैसे अंदर ही कोई हँसता है
मैंने हिम्मत जुटाई
पूछा कौन हो तुम !
उसने कहा तुम्हारा अपना हूँ !
मेरे हमराही
जिस सुकून को ढूंढ़ता तू
हर रौशनाई !
शांत हो, ठहर जा
देख, महसूस कर
तेरी हर आती जाती श्वांसो में
मचलती धड़कनों में
रौशनी में, अंधेरों में
मैं तेरे अंदर ही समाई
महसूस कर…
मैं तेरे अंदर ही समाई