नढी यहॉ पर
नदी यहाॅ पर मुड़ती है
फिर चलती ही जाती है
चलते - चलते सागर को
आखिर मे वह पाती है।
मिलती लंबी राह उसे
देती है सबको पानी
सींच - सींचकर...
फिर चलती ही जाती है
चलते - चलते सागर को
आखिर मे वह पाती है।
मिलती लंबी राह उसे
देती है सबको पानी
सींच - सींचकर...