" ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!" 🍁
ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!🍁
ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!
च़िता सी सुलगे, चिंतन-मनन में!
हर तरफ़ को़हरा, धुआं सा उठता है,
ज्वारभाटा बन जाता छण भर में!
तर्पण जैसे बवंडर, हृदय के कण-कण में!
सूक्ष्म छितिज धुंधलाया, ध्रुव तारा गगन में!
अघोर रहा था प्रेम बन सुन्दर चितवन में,
घोर अंधेरा फ़ैला कब, ज्ञान नहीं अर्नब में!
ये कैसी धरा पर भीषण युद्ध कोहराम मचाए,
लहुलुहान है गृहस्थ, शीत ऋतु शमन में!
कैसे धीर धरूं मन के इस कोतुहल में,
जे अग्नि लगाए आग़, मेरे हृदय-चमन में!
काहे पीहू पीक लगाए, मेघ बरसे सावन में,
अब न आए पिया, जब लागे मन परधन में!
क्या मोती और स्वर्ण, जब माटी भरे हैं तन में,
राख़ है गंगा में, स्वाहा है हाड़-मांस अगन में!
ये कैसा काल, कष्ट मिटे न सूझे कोय उपाय, कर्ज उतारो जग की, फंसे क्यूँ जनम-मरन में!
ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!
च़िता सी सुलगे, चिंतन-मनन में...
च़िता सी सुलगे, चिंतन-मनन में...
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
©श्वेतनिशा सिंह🌠
#अंतर्मन
#असमंजस
#जंग
#हृदय_द्वंद
#निशा_सी_मैं
#writcowriters
#writcocommunity
#writcohindi
#lifelessons
#Shweatnisha_Singh_hindiquotes
©Shweatnisha_Singh🦋
ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!
च़िता सी सुलगे, चिंतन-मनन में!
हर तरफ़ को़हरा, धुआं सा उठता है,
ज्वारभाटा बन जाता छण भर में!
तर्पण जैसे बवंडर, हृदय के कण-कण में!
सूक्ष्म छितिज धुंधलाया, ध्रुव तारा गगन में!
अघोर रहा था प्रेम बन सुन्दर चितवन में,
घोर अंधेरा फ़ैला कब, ज्ञान नहीं अर्नब में!
ये कैसी धरा पर भीषण युद्ध कोहराम मचाए,
लहुलुहान है गृहस्थ, शीत ऋतु शमन में!
कैसे धीर धरूं मन के इस कोतुहल में,
जे अग्नि लगाए आग़, मेरे हृदय-चमन में!
काहे पीहू पीक लगाए, मेघ बरसे सावन में,
अब न आए पिया, जब लागे मन परधन में!
क्या मोती और स्वर्ण, जब माटी भरे हैं तन में,
राख़ है गंगा में, स्वाहा है हाड़-मांस अगन में!
ये कैसा काल, कष्ट मिटे न सूझे कोय उपाय, कर्ज उतारो जग की, फंसे क्यूँ जनम-मरन में!
ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!
च़िता सी सुलगे, चिंतन-मनन में...
च़िता सी सुलगे, चिंतन-मनन में...
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©श्वेतनिशा सिंह🌠
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