उलझन
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर
आँखों को अपनी अश्को से नम ना कर
सब्र तो कर कुछ वक़्त की घड़ियों का
सब्र के साथ खुशियों की आमदो का इंतजार तो कर
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर ।।
वक़्त तो आता जाता रहता है ज़िन्दगी में
दिल तो लगा तन्हा रहकर तू रब की बंदगी में
चन्द मुश्किलातों से घबराकर
तू अपनी जायज़ ख्वाहिशो को...
आँखों को अपनी अश्को से नम ना कर
सब्र तो कर कुछ वक़्त की घड़ियों का
सब्र के साथ खुशियों की आमदो का इंतजार तो कर
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर ।।
वक़्त तो आता जाता रहता है ज़िन्दगी में
दिल तो लगा तन्हा रहकर तू रब की बंदगी में
चन्द मुश्किलातों से घबराकर
तू अपनी जायज़ ख्वाहिशो को...