...

5 views

उलझन
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर
आँखों को अपनी अश्को से नम ना कर
सब्र तो कर कुछ वक़्त की घड़ियों का
सब्र के साथ खुशियों की आमदो का इंतजार तो कर
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर ।।
वक़्त तो आता जाता रहता है ज़िन्दगी में
दिल तो लगा तन्हा रहकर तू रब की बंदगी में
चन्द मुश्किलातों से घबराकर
तू अपनी जायज़ ख्वाहिशो को कम ना कर
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर ।।
बदलते हालातो से तू क्यो घबरा रहा है
चन्द अजियतो के माहौल में क्यो अश्क़ बहा रहा है
आयेंगी फिर से मुस्कराहटें तेरी वीरान ज़िन्दगी में
तू रब की रजा पर मुकम्मल ऐतबार तो कर
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर ।।
बेचैनियों को क्यो अपने करीब तू आने दे रहा है
रब की दी हुई ज़िन्दगी को क्यो इल्जाम दे रहा है
हटने वाला है धुंध का पर्दा तेरी निग़ाहों से
तू वक़्त की हर शय पर रब का शुकराना तो अदा कर
अरे ओ ''इलाही'' तू रन्ज ए गम ना कर ।।
✍️Imran Ilahi