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कैसे समझाऊँ
मैं लोगों को समझ ना पाया
क्या लोग समझते हैं मुझको
दुष्कर है समझना समझाना
कैसे समझाऊँ मैं तुमको।

जिनको मैंने अपना समझा था
आज वही मुँह मोड़ चले हैं
उदासीन दिग=भ्रमित हुए हैं
सारे संबंधों को तोड़ चले हैं
सहचर थे जो मेरे जीवन के
जिनकी तस्वीर थी आंखों में
मकरंद सुभाषित था जिनका
मेरी हर आती जाती साँसों में
फटे पुराने पन्नों की तरह
अब लोग पलटते हैं मुझको।
दुष्कर है समझना समझाना
कैसे समझाऊँ मैं तुमको।
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