...

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तुम्हारा सघन प्रेम..छांव रहित..
इस सघन वन की तरह है तुम्हारा प्रेम,
कहां से शुरु होकर कहां खत्म होता है,कुछ समझ नहीं आता..।

छांव नहीं मिलती फिर भी इसे..
लेकिन इसकी सघतना में भी ये मन तपता है धूप से।

ना सूरज की रौशनी मिलती है जड़ों को..ना खाद भरपूर,
जो ज़रूरी है,क्षीणता से बचाए रखने के लिए..!

देते रहो इसको भी थोड़ी सी गर्माहट
बहुत सर्दी है,देखना कहीं ठंडे ना पड़ जायें।

साँप सीढ़ी की तरह चढ़ता है..फिर..
धड़ाम से मुंह के बल गिरा देता है 1 मिनट बाद।

कौन सी शाखा किससे जुड़ी है,
कब हमारा था और पराया कितनी देर में हुआ।

किससे कितना जुड़ा,किससे कितनी दूर है
समझ ही नहीं आता,अब कब लौटेगा उसी रूप में।

क्या है,कितना है, कब खत्म हो जाए कुछ नहीं पता..
बस उलझा रखा है.. ख़ुद में मुझे तुम्हारे प्रेम ने।

अब बता भी दो कब सुलझाओगे,कब मिलेगा इन्हें स्पर्श तुम्हारा.,
कब मिलेंगे इन्हें मायने, सिर्फ तुम्हारे होने के..!

काई जमने लगी है,और तुम्हें भी पता है..
कि एक की एहमियत घट जाती है दूसरे के आने से..।

काट दूर करो एक बार में ही.. रोज़ तिल तिल काटना ठीक नहीं..
दर्द बहुत होता है.. टुकड़े हो जाते हैं हमारे उसी प्रेम के।

आकांक्षा मगन "सरस्वती"

#सघनप्रेम_बिखरी यादों की छांव में
#आकांक्षामगनसरस्वती
#तुम्हारीयादें