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तन्हाई
नहीं हो रहा है मुझसे अब और सब को समेटना, खुद को समेटना, काँच के टुकड़ों की तरह जमीन पर टूट कर बिखरी गई हूं खुद ही खुद के टुकड़े समेटने जाती हूं खुद ही को चुभने लगी हूं अब, जितना ठीक कर...