ग़ज़ल
०रेत पर क़दमो के निशाँ छोड़ गया कौन?०
००००0०००००0००००००0००००००0००००
रेत पर क़दमों के निशां छोड़ गया कौन
दरिया पर अक्स अपना छोड़ गया कौन?
हम तो शाखों औ टहनी को थामे खड़े थे
एक पल में झटके से उसे तोड़ गया कौन?
...
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रेत पर क़दमों के निशां छोड़ गया कौन
दरिया पर अक्स अपना छोड़ गया कौन?
हम तो शाखों औ टहनी को थामे खड़े थे
एक पल में झटके से उसे तोड़ गया कौन?
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