खुली किताब*
खुली किताब कहानी यह आज के दौर की
कहते भी है सौ सुनार,तो एक लुहार की
शब्द मेरे तीखे जो चुभेगे तीर की भांति
मगर कड़वी सच्चाई लिपटी है जंजीर की भांति!!
बन बैठी है आज स्त्री खुली किताब
देह दिखाने की होड़ मे किया बस्त्र त्याग
सब दोष नहीं इन चंचल नजरों का
कुछ तो हरकत हुई जो पन्ना बना खबरों का!!
आधुनिकता मे वही जा रही कामवासना की नदी
निर्वस्त्र हो रही स्त्री जो थी आभूषणो से लदी
ये दौर है अलग मै इसकी भी खबर...
कहते भी है सौ सुनार,तो एक लुहार की
शब्द मेरे तीखे जो चुभेगे तीर की भांति
मगर कड़वी सच्चाई लिपटी है जंजीर की भांति!!
बन बैठी है आज स्त्री खुली किताब
देह दिखाने की होड़ मे किया बस्त्र त्याग
सब दोष नहीं इन चंचल नजरों का
कुछ तो हरकत हुई जो पन्ना बना खबरों का!!
आधुनिकता मे वही जा रही कामवासना की नदी
निर्वस्त्र हो रही स्त्री जो थी आभूषणो से लदी
ये दौर है अलग मै इसकी भी खबर...