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लिखकर कविता मैं कैसा मह्सूस करता हूँ
लिखकर कविता मैं कैसा मह्सूस करता हूँ,
लिखकर कविता मै ऐसा मह्सूस करता हूँ।

मानो बागों में बहार हो,
यशोदा को मिला उनका लाल हो।

एक पिंजर से उरे परिंदे को मिला नया संसार हो,
एक माता को मिला उसके पुत्र का तार हो।

एक गायक को मिला उसका सार हो,
एक भूले को मिला उसका आर हो।

एक गरीब को मिला धन अपार हो,
एक विद्यार्थी को मिला ज्ञान का भंडार हो।

एक मर्जारी को मिला चूहे का संसार हो,
एक भूखे को मिला आहार हो।

एक पर्वतारोही को मिला पहाड़ हो,
और माँ सरस्वती को मिला उनकी वीना का तार हो।


:-दिव्य प्रकाश