...

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बदलते ज़ज्बात...
बेशक, तुम इन दरवाज़ों को बंद तो कर रहे हो
हाँ थोड़ी सी जगह छोड़ देना शिकायत के लिए...

नाराज़गी रख रहे हो हमसे, और जायज भी है
ज़रा गुंजाइश तो रहे मनाने की रवायत के लिए...

क्या फर्क कि जमाना दुश्मन हुआ जाता है तेरा
मैं तो खड़ा रहूंगा हमेशा, तेरी हिमायत के लिए...

तुझे पूछने पर भी...