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यादों का क्या कसूर
कभी लब्ज़ों को वक्त दिया तो कभी खुद के जज्बातों के नसीहत मानी पर हर वक्त जो सताए तुम्हारी उन यादों का क्या? जो मेरी खाली पड़ी आंखों में मोती बनकर नज़र आ जाते हैं शायद गलती मेरी थी उन यादों का क्या कसूर??

राब्ता रब बनाता है थोड़ी देर से समझ आई आंखों में आंसू भी चुभते हैं,...